अपनों को कभी रुलाने का तो कभी मनाने का बहाना होना चाहिए - विकास Yudi




वक्त का क्या पता जो कभी कुछ भी बना देता,
कभी अपनों में गैर तो कभी गैरों में अपने,
नहीं पता था कभी कोई दिल के इतने पास आयेगा,
बीते वक्त ने हम दोनों एक दूसरे के कितने पास कर गया,
मुझमें हम तो हम्मे तुम नजर आने लगे,
कुछ तो रहा होगा ना हमारे बीच इतने सालों में,
पर क्या पता था वक्त के साथ हम तुम कितना बदल गए,
दोस्ती को इतनी अहमियत तो देनी ही थी,
क्योंकि रिश्ते तभी कामयाब होते हैं,
जब रिश्तो में समझदारी होती ,
कभी रूठना था मै खुद की वजहों से तुमसे,
तो कभी रूठना था तुम्हारी वजहों से,
तो कभी नाराज भी होता था अपनी वजहों से,
तो कभी नाराज भी होता तो तुम्हारी वजहों से,
पर दोनों का ना बोलना इस जमाने को पसंद था,
हम बार-बार नाराज होते एक दूसरे से,
पर हम दोनों की दोस्ती में कभी कोई कमी ना हुई,
हां रूठते थे हम दोनों पर हमेशा के लिए नहीं,
हां पर एक दूसरे से जब रूठते थे ना ,
फिर से बोलने का मन करता था,
फिर क्या होता है पता ही होगा ना तुम्हें,
फिर वही पुरानी सिलसिला चालू रहता,
कभी रूठना तो कभी मनाना था,
तो कभी सब कुछ एक दूसरे को बताना था,
हां इतनी तो समझदारी होनी ही चाहिए थी ना हमारी दोस्ती में,
फिर हम दोनों रूठेंगे फिर नहीं बोलेंगे,
पर कुछ दिन बाद फिर बोलेंगे यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा,
क्योंकि अपनों को कभी रुलाने का तो कभी मनाने का बहाना होना चाहिए,

© विकास-Yudi